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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

साहित्य में मार्क्सवाद की स्वीकृति इसलिए सम्भव हुई क्योंकि यह वाद अपने समय की सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक विषमताओं से टकरा रहा था। यह विचारधारा इतनी प्रखर थी कि अपने उत्स भूमि तक ही सीमित न रहकर पूरी दुनिया की राजनीति को प्रभावित किया। मार्क्सवाद ने जो दर्शन दिया उससे दुनिया के अनेक देशों ने जो राजनीतिक, आर्थिक विडम्बनाओं से जूझ रहे थे पूरी श्रद्धा से स्वीकार किया तथा इसके आलोक में उन्होंने अपना मार्ग प्रशस्त किया।

इस विचारधारा ने साहित्य को भी पूरी तरह प्रभावित किया। मार्क्सवादी चिन्तन को प्रगतिशील चिन्तन भी माना जाता है। इसके सूत्र बेलिस्की, हर्जन, चर्नीशेबसकी दोबोल्युबीव आदि चिन्तकों में भी मिल जाते हैं, पर प्रमुख रूप से कार्लमार्क्स (सन् 1818-1883) और फ्रेडरिख ऐंजिल्स ही उसके व्याख्याता माने जाते हैं। मार्क्स ने पर्याप्त साहित्य लिखकर विश्व की चिन्तनधारा को प्रभावित किया। साहित्य सम्बन्धी उनके विचार उनके ग्रन्थों में ही झलकते दिखते हैं। उनके बाद इस परम्परा के सूत्र लेनिन, मैक्सिम गोर्की, प्लेखानोव, लूनाचक, क्रिस्टोफर, कॉडवेल (1907-1937), जार्ज लूकाच (1885-1971), राल्फ फॉक्स (1900-1937) आदि में भी पाये जाते हैं।

मार्क्स द्वारा लिखित साहित्य सामाजिक, आर्थिक विषमताओं को प्रकाश में लाता है। उनके चिन्तन विशेषकर 'द्वद्वात्मक भौतिकवाद' ने साहित्य के आनन्दवादी मूल्यों को अमान्य करके उपयोगितावादी मूल्यों की प्रस्थापना की। मार्क्स ने प्रायः अनेक विषयों पर ऐंजिल्स के साथ मिलकर लिखा है। उनके साहित्य और कला सम्बन्धी विचार 'लिटरेचर एंड आर्ट' नामक ग्रन्थ में प्रकट हुए हैं, जो उनके ए कन्ट्रव्यूशन टू दि क्रिटिक आफ पोलिटिकल इकोनामी नामक ग्रन्थ की प्रस्थावना का अंश है। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद मार्क्स एक प्रमुख सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त को समझने के लिए थोड़ा सा सहारा दर्शन का लेना पड़ेगा। दार्शनिक चिन्तन की दो परम्पराएँ शुरूआत से ही मिलती है। एक परम्परा आत्मावादी है तथा दूसरी परम्परा भौतिकवादी है। आध्यात्मवादी ईश्वर में विश्वास करके उसे ही नियामक और नियन्ता मानते हैं। पर भौतिकवादी किसी चेतना सत्ता की स्थिति को स्वीकार नहीं करते। मार्क्स शुद्ध भौतिकवादी हैं, वे इस सृष्टि का मूल तत्त्व भूत अथवा पदार्थ (Matter) अथवा जड़ प्रकृति को ही मानते हैं। उनकी धारणा है कि भूत द्रव्यों के संयोग से पदार्थ की उत्पत्ति होती है। साथ ही अस्तित्व में आने के बाद भी पदार्थ के भीतर ही भीतर उसके निर्माता भूत द्रव्यों की क्रिया प्रतिक्रिया चलती रहती है। जो उनकी गति निर्धारित करती है। यह गति ही परिवर्तन और विकास का आधार है। अतः प्रशिक्षण गतिशीलता, परिवर्तनशीलता, विकासशीलता तथा तत्वों के बीच अन्तः क्रिया ही द्वंद्वात्मक भौतिक विकास का लक्षण है। लेनिन ने स्पष्ट कहा है कि Development is the struggle of opposits.

मार्क्स की विचारधारा को पढ़कर मन में एक सवाल उठता है कि प्रकृति तो जड़ एवं चेतनाहीन है फिर उसमें गतिशीलता एवं परिवर्तन कैसे सम्भव है। इसका समाधान भी मार्क्स के एक कथन से हो जाता है। मार्क्स कहते हैं कि ईंट व पत्थर आदि चाहे जड़ हैं, पर उनकी अणुओं के संयोग से ही होती है, जिनका निर्माण न्यूट्रॉन एवं इलेक्ट्रॉन से होता है, जिन्हें विज्ञान नित्य गतिशील मानता है। इस प्रकार जड़भूत की गत्यात्मकता अनवरत एवं निरापाद है। अतः जड़ प्रकृति (जोकि स्वयं गतिमान है) को संचालित करने के लिए किसी बाह्य शक्ति (ईश्वरादि) की आवश्यकता नहीं है। वह स्वचालित है, स्वयं परिवर्तनगामी है, स्वयं विकासोन्मुख है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि मार्क्स का मूल आग्रह यह है कि प्रकृति गतिशील एवं परिवर्तनशील है। मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सारांश यही है कि समाज का विकास द्वंद्वात्मक भौतिकवाद से ही सम्भव है। जब दो परस्पर विरोधी तत्व आपस में टकराते हैं, क्रिया प्रतिक्रिया करके आगे निकलने की होड़ करते हैं तब समाज का विकास सम्भव होता है। यानी किसी भी चीज में विकास के लिए उसके अन्दर द्वन्द्व की स्थिति अनिवार्य है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

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